जब तक पशु-पक्षी शिकार के लिए थे बड़ी संख्या में करता रहा आदमी उसका शिकार अब नहीं है तो अब एक दूसरे को रहे हैं मार जिन हवाओं को पीते थे पेड़-पौधे काट-काटकर किया उनको तबाह आदमी अब रहता है बीमार दोष देते हैं जमाने को लोग जबकि उनके अंदर ही हैं विकार अपनी हालातों के लिए खुद ही ज़िम्मेदार दूसरे को रहे हैं धिक्कार